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Praveen Gola
- Age: 46
- City: Delhi
शादी के बाद पन्द्रह साल मैने सिर्फ अपने बच्चों को बड़ा करने में ही लगा दिये | मगर एक खालीपन मुझे हमेशा ही कचोटता रहा जो मेरी खराब होती हुई शिक्षा के लिए ज़िम्मेदार था | मैं अक्सर सोचा करती कि एक पढ़ी लिखी महिला होने के बावजूद भी मैं इस तरह से बंद कमरे की चारदीवारी में आखिर कैद क्यूँ हूँ ?
वर्ष 2010 में हमने एक कम्प्यूटर खरीदा और बस वहीं से मैने अपने आप को एक नई दुनिया से जोड़ लिया | पहले मैने एक Education and career forum में कई साल काम किया जहाँ रात भर जाग -जाग के मैं युवा पीढ़ी को उनके कैरियर के नए मार्ग सुझाती थी और बदले में मुझे अपने इंटरनेट के खर्चे जितना रूपया भी नहीं मिल पाता था पर मैं फिर भी खुश थी कि कम से कम मेरी शिक्षा बेकार तो नहीं जा रही | मगर धीरे - धीरे पति फिर ताना देने लगे और मुझे forum छोड़ना पड़ा |
मैं अपने खालीपन को भरने के लिए अब फिर से इंटरनेट पर सर्फिंग करने लगी | धीरे - धीरे मैं बहुत सी वेबसाईटों से जुड़ गई |
मैं वहाँ लिखती और लोग मेरे लेखों को पसंद करते | कुछ सालों बाद मुझे अपने अंदर छिपी हुई प्रतिभा का एहसास हुआ जब मेरा नाम एक लेखिका के रुप में छपने लगा | मेरी लिखी कविताएँ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पढ़ी जाने लगीं |
https://youtu.be/SFam1a39Pog
https://youtu.be/Ad5h3dETLpQ
मेरी कविता की कुछ पंक्तियाँ yesfoundationindia
की एक फिल्म में ली गईं |
https://youtu.be/WaYEi97OBb0
मेरी लिखी एक कहानी "" अधूरी औरत "" पर आख्यान नट्शाला द्वारा इन्दौर में एक नाट्यमंचन हुआ |
मेरा एक लेख पाकिस्तान के उर्दू अखबार "" Daily Siyaq "" में छपा |
मैने पूरे एक साल "" अभिनव बालमन "" नामक पत्रिका के साथ बतौर "" दिल्ली प्रतिनिधि "" के रुप में काम किया |
आज मैने एक लेखिका , आर्टिस्ट , फोटोग्राफर , कैरियर काउन्सलर , ब्लॉगर आदि के रुप में इंटरनेट पर अपनी पहचान बनाई है |
इन सबके लिए मुझे कोई पैसा नहीं दिया जाता है मगर फिर भी मैं बस अपने जुनून को ज़िन्दा रखने के लिए ये सब कार्य करती हूँ और एक लेखिका के रुप में अपनी एक नई पहचान के साथ जानी जाती हूँ |
आपकी आभारी हूँ जो आप लोगों ने हम जैसी साधारण महिलायों के सम्मान के लिए भी कोई अवार्ड निकाला है ज़िनके पास आज अपनी ही लिखी हुई रचनायों की किताब छपवाने के भी पैसे नहीं है .... अगर कुछ है तो बस एक जुनून और कुछ सपने |
मैं अपना नाम एक लेखिका के रुप में नामांकित करना चाहूँगी जो पिछले कई सालों से साहित्य में एक बंद कमरे से अपना योगदान बना रही है |+H75"